Saturday, November 20, 2010

life

जब I.I.T. के ख्वाब देखते F.E.T. में जा बैठा

वख्त की ऐसी मार पड़ी सारे ख्वाब भुला बैठा

एक स्कूल ही याद आया जब-२ लेक्चर में बैठा हूँ

वो बात अलग है के अक्सर कैंटीन में ही मै रहता हूँ

हास्टल के हसी ठहाको में जाने कब वक़्त यु बीत गया

ये बात समझ तब आई जब पहला सेम नजदीक हुआ

फिर मिलजुल कर प्रेम भाव से यारो ऐसा जतन किया

पहली दो यूनिट मैंने बाकि रूम मेट ने ख़तम किया

इससे पहले की एक दूसरे को हम वो समझा पाते

पहुच गए एक्ज़ाम हाल में हाय बुरा नसीब हुआ

पहले ही घंटे में मैंने जो आता था लिख डाला है

अब दादी माँ के किस्सों का ही यारो बचा सहारा है

सारे किस्से भी लिख डाले पर वक़्त तो जैसे ठहर गया

तब कमरें में जो मैडम थी चंचल मन उनकी ओर गया

जैसे ही नज़रें चार हुई वो बोली कोई समस्या है?

क्या कहता के मृगनयनी तुझ पे घायल ये मन मेरा है

इस सोच से जब बाहर आया देखा वक़्त था बीत गया

एक्जाम हाल से निकला मै क्या लिखा था सब भूल गया

था जोश बहुत अगले पेपर में सारी कसर निकालूँगा

जाते ही पुस्तक खोल के मै सारी यूनिट रट डालूँगा

पर ख्वाब तो मिथ्या होते हैं ये सत्य समझ तब आया है

जब दादी माँ के किस्सों का हर सेम में लिया सहारा है

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